भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्तराष्ट्र में जो भाषण दिए, क्या उनकी तुलना की जा सकती है? जब कल सुबह मैंने इमरान खान का भाषण सुना तो मुझे लगा कि शाम को नरेंद्र मोदी अपने भाषण में उसके परखच्चे उड़ा देंगे। कुछ टीवी चैनल भी यही कह रहे थे लेकिन जो सोचा था, वह हुआ नहीं। होता भी कैसे ? प्रधानमंत्री के ये भाषण पहले से रिकार्ड किए हुए होते हैं। मोदी को क्या पता था कि इमरान खान भारत पर इतना जहरीला हमला करेंगे। यों भी ये आज के प्रधानमंत्री नेहरु और नरसिंहराव की तरह नहीं हैं, जो अपने भाषण खुद लिखते थे। या तत्काल दे देते थे। अब तो अफसरों ने जो लिख दिया, वही नेता लोग पढ़ डालते हैं। जाहिर है कि इमरान का भाषण किसी पाकिस्तानी फौजी अफसर का लिखा हुआ था। उसमें न तो पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था का कोई जिक्र था, न ही इमरान सरकार के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का विवरण था और न ही विश्व-शांति के किसी काम में पाकिस्तान के योगदान का उल्लेख था। इमरान का भाषण पूरी तरह भारत पर केंद्रित था। उसमें पाकिस्तान द्वारा आर्थिक मदद के लिए झोली फैलाने का जिक्र जरुर था लेकिन इसके विपरीत मोदी के भाषण में कहीं भी पाकिस्तान का नाम तक नहीं था। उन्होंने किसी भी राष्ट्र पर सीधे या घुमा-फिराकर हमला नहीं किया। उन्होंने यह जरुर कहा कि किसी राष्ट्र (अमेरिका) के साथ दोस्ती का अर्थ यह नहीं कि किसी अन्य राष्ट्र (चीन) से भारत की दुश्मनी है। उन्होंने विश्व-परिवार की भावना का आह्वान किया, उनकी सरकार द्वारा किए गए लोक-सेवा के कार्यों को गिनवाया, दुनिया के देशों में भारत की शांति-सेनाओं के योगदान को रेखांकित किया और संयुक्तराष्ट्र संघ के नवीनीकरण की मांग की। 75 वर्ष की संस्था के चेहरे से बुढ़ापे की झुर्रिया हटाकर उसे जवान बनाने का नारा लगाया। कोरोना के इस विश्व-संकट से उबरने में भारत की भूमिका को स्पष्ट किया। उन्होंने भारत की क्षमता और सामर्थ्य का बड़बोला गुणगान करने की बजाय मर्यादित शब्दों में मांग की कि उसे उसका उचित स्थान मिलना चाहिए। दूसरे शब्दों में मोदी ने इस विश्व-मंच का इस्तेमाल इस तरह से किया कि भारत की विश्व-छवि में चार चांद लगे और इमरान ने इस तरह किया कि पाकिस्तान दुनिया की नजरों में दया का पात्र बन गया। जैसा कि मैं इमरान को जानता हूं, इसमें शायद इमरान का दोष बहुत कम होगा। दोष उसी का है, जिसने उन्हें गद्दी पर बिठाया है। अपनी फौज की आवाज को उन्होंने सं. रा. में गुंजाया और मोदी ने अपने देश की आवाज को। दोनों के भाषणों की तुलना करें तो आपको पता चल जाएगा कि कौन किसकी बोली बोल रहा था?
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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