पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा बिहार की राजनीति के कद्दावर राजनेता रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में निधन हो गया, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी नेताओं में से एक रघुवंश बाबू ने तीन दिन पहले ही पार्टी से इस्तीफा देकर प्रदेश की राजनीति में हड़कंप मचा दिया था, उनके जाने के बाद एक किस्सा हमेशा सुर्खियों में रहेगा, वो है रघुवंश बाबू और राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह के बीच की तल्खियां, माना जा रहा है कि दोनं के बीच की तल्खियां ही उनके इस्तीफे की एक अहम वजह रही, 90 के दशक में शुरु हुई इस वर्चस्व की लड़ाई में आखिरी कील 2014 लोकसभा चुनाव में पड़ी, तब रामा सिंह ने लोजपा के टिकट पर वैशाली से रघुवंश बाबू को हरा दिया था।
रघुवंश बाबू और रामा सिंह के बीच की दूरियां
दरअसल रघुवंश बाबू राजनीति में बाहुबलियों के प्रवेश से कभी खुश नहीं थे, 90 के दशक में रामा सिंह ने मालदा से लेकर गोरखपुर तक रेलवे के टेंडर में अपना हाथ डाला था, तब से ही ये विवाद शुरु हुआ, लालू के जेल जाने के बाद पार्टी में अंदरखाने ये सवाल हमेशा उठता रहा कि राजद में अब रामा सिंह की चलेगी या रघुवंश बाबू की, क्योंकि खबर आ गई थी कि रामा सिंह राजद में शामिल होने जा रहे हैं, जिससे दुखी रघुवंश बाबू ने पहले पद फिर पार्टी से इस्तीफा दिया, सिर्फ 38 शब्दों में लिखे पत्र में 32 सालों का साथ छोड़ने का कारण तो उन्होने नहीं बताया, लेकिन उनकी नाराजगी की कई वजहें थी, जो बिहार की सियासी गलियारों को जानन-समझने वाले सभी लोगों को पता है, इसकी एक वजह वोट बैंक भी था, दोनों ही राजपूत बिरादरी से आते हैं, और वोटों का बंटवारा नहीं चाहते थे, लेकिन तेजस्वी यादव रामा सिंह के करीब जा रहे थे, ये बात प्रोफेसर साहब को नागवार गुजरी।
2019 के बाद ही इस्तीफे की लिखी गई थी पटकथा
रघुवंश बाबू के इस्तीफे की वैसे तो कई और वजहें भी है, लेकिन जानकारों की मानें, तो उन्होने 2019 लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त और तेजस्वी के कमान संभालते ही इसकी पटकथा लिखी जा चुकी थी, बिहार में पिछले कुछ महीनों से ये चर्चा जोरों पर थी, कि तेजस्वी रामा सिंह को राजद में लाने वाले हैं, रघुवंश बाबू ने इसका विरोध किया, लेकिन आग में घी का काम कर गया था रामा सिंह का वो बयान जिसमें उन्होने कहा था कि राजद में उनकी एंट्री तय है, उन्हें कोई नहीं रोक सकता, रामा सिंह ने रघुवंश बाबू पर तंज कसते हुए कहा था कि उनका राजद में क्या योगदान है, इसकी मुझे भी पूरी जानकारी है, इन बयानों के बाद भी रामा सिंह के मामले में तेजस्वी की चुप्पी ने रघुवंश की नाराजगी और बढा दी।
राजनीतिक समझ का लाभ नहीं उठा सका नया राजद
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही रघुवंश प्रसाद सिंह अक्सर नीतीश कुमार को महागठबंधन का चेहरा बनाये रखे जाने की तरफदारी करते थे, राजद नेताओं को ये बात नागवार गुजरती थी, नीतीश को तेजस्वी का राजनीतिक गुरु बनवाने की वकालत करते रहे थे, इसकी एक वजह ये भी है कि तेजस्वी यादव का राजनीतिक भविष्य तभी आगे बढेगा, जब सीधे तौर पर नीतीश की छत्रछाया से बाहर निकल पाएंगे, हालांकि इस बात की गहराई को वो तेजस्वी यादव या अन्य राजद नेताओं को समझा नहीं पाये, इसके साथ ही इस मसले पर लालू की खामोशी भी रघुवंश बाबू के पहल को खारिज करने के लिये काफी थी। राजद का नया नेतृत्व बुजुर्ग और अनुभवी नेता की बातों को समझ नहीं पाया, जिसका परिणाम बाद के दिनों में रघुवंश बाबू के इस्तीफे के रुप में सामने आया।
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