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Monday, October 5, 2020

बलात्कार पर राजनीति ?


अभी हाथरस में हुए बलात्कार का खून सूखा भी नहीं है कि उ.प्र., राजस्थान, म.प्र., छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों से भी नृशंस बलात्कार की नई खबरें आती जा रही हैं। हाथरस में हुए बलात्कार ने भारत को सारी दुनिया में बदनाम कर दिया है। लंदन के कई अंग्रेज सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर सख्त कार्रवाई की मांग की है। हाथरस में विपक्षी दलों के नेता पीड़िता के परिवार से मिलने के नाम पर अपनी राजनीति गरमा रहे हैं और भाजपा के नेता या तो मौन धारण किए हुए हैं या सारे मामले को शीर्षासन कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। एबीपी टीवी चैनल के साहसिक संघर्ष और कई संपादकीयों के दबाव में आकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने कुछ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई तो की है लेकिन हाथरस का जिलाधीश किसके इशारे पर पुलिसकर्मियों को नचा रहा था और पीड़िता के शव को रातोंरात जलवा रहा था, यह रहस्य अभी तक बना हुआ है। यदि अन्य प्रांत के मुख्यमंत्रियों को ऐसे अवसर पर किसी से कुछ सीखना चाहिए तो वह म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान से सीखना चाहिए। म.प्र. के नरसिंहपुर जिले में एक दलित परिवार की महिला के साथ बलात्कार हुआ। जब वह महिला और उसका पति इस कुकर्म की रपट लिखवाने के लिए थाने में गए तो सिपाही ने रपट लिखने से मना कर दिया और उस महिला के पति को गिरफ्तार कर लिया। वह 5000 रु. की रिश्वत देकर छूटा।

जब वह घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी का शव फंदे से लटका हुआ था। सारे गांव में उस औरत की बदनामी हो चुकी थी। मुख्यमंत्री चौहान ने तत्काल उस पुलिसकर्मी को गिरफ्तार करवाया और बलात्कार के आरोपियों को भी पकड़वाकर अंदर कर दिया। अब उनके साथ चौहान वही करे, जो मैंने पहले लिखा था याने अदालत से हफ्ते भर में उन्हें फांसी लगवाए, भोपाल या इंदौर के किसी चैराहे पर ! और उनकी लाशों को कुत्तों से घसिटवाकर जंगल में फिकवा दे। उसका जीवंत प्रसारण सभी टीवी चैनलों पर हो तो देखिए कि देश में बलात्कार की घटनाएं घटती हैं या नहीं ? अभी तो देश में बलात्कार की दर्जनों घटनाएं रोज़ सामने आती हैं और सैकड़ों छिपी रहती हैं। हमारे राजनीतिक दल बलात्कार को लेकर एक-दूसरे की सरकारों को कठघरे में खड़े करने से बाज नहीं आते लेकिन वे इस राष्ट्रव्यापी बीमारी को जड़ से उखाड़ने की तरकीब नहीं खोजते। बलात्कार की बेमिसाल सजा तो उसके इलाज की उत्तम दवा है ही लेकिन पारिवारिक संस्कार और शिक्षा में मर्यादा की सीख भी बेहद जरुरी है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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