कल मैंने लिखा था कि डोनाल्ड ट्रंप- जैसे आदमी को साढ़े चौदह करोड़ वोटों में से लगभग सात करोड़ वोट कैसे मिल गए। अब पता चल रहा है कि जोसेफ बाइडन को ट्रंप के मुकाबले अभी तब सिर्फ पचास-साठ लाख वोट ही ज्यादा मिले हैं। बाइडन की जीत पर अमेरिका और भारत की जनता तो खुश है ही, दुनिया के ज्यादातर देश भी खुश होंगे। सबसे ज्यादा खुश चीन होगा, क्योंकि पहले तो ट्रंप ने अमेरिका के व्यापारिक शोषण के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया और फिर उसे सारी दुनिया में कोविड-19 या कोरोना फैलाने के लिए बदनाम कर दिया। कोरोना के प्रति लापरवाही दिखानेवाले ट्रंप खुद कोरोना की चपेट में आ गये। दुनिया की सबसे शक्तिशाली अर्थ-व्यवस्था लंगड़ाने लगी। लगभग 2 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारों को पटाने के लिए ट्रंप ने बहुत-सा द्राविड़-प्राणायाम किया लेकिन वह भी उनको जिता नहीं पाया। अब बाइडन के कंधों पर यह बोझ आन पड़ा है कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकें। उन्होंने अभी से इस दिशा में काम शुरु कर दिया है। उनकी सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि चुनाव-नतीजों के आने पर न तो उन्होंने ट्रंप के खिलाफ एक भी शब्द बोला और न ही चुनाव-प्रक्रिया के खिलाफ। उन्होंने अपनी गरिमा बनाए रखी लेकिन ट्रंप का घमंडीपन देखिए कि उन्होंने अपने बयानों से संपूर्ण अमरीकी लोकतंत्र को ही कलंकित कर दिया। उनकी अनर्गल प्रलाप करने की आदत को किस-किसने नहीं भुगता है ? उन्होंने उत्तर कोरिया के किम, चीन के शिन ची फिंग, भारत के नरेंद्र मोदी, नाटो देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों— किसी को भी नहीं बख्शा। अमेरिकी राजनीति के इतिहास में उनका नाम सबसे घटिया राष्ट्रपतियों में लिखा जाएगा। जब वे नए-नए राष्ट्रपति बने तो उन पर बलात्कार और व्यभिचार के कितने आरोप लगे। उनके मंत्रियों, साथियों और अधिकारियों ने उनसे तंग आकर जितने इस्तीफे दिए, शायद किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के काल में इतने इस्तीफे नहीं हुए। लेकिन अमेरिका भी अजीब देश है, जिसने ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति बना दिया और चार साल तक उसे अपनी छाती पर सवार रखा। अमेरिकी जनता हिलैरी क्लिंटन की हार की भरपाई तभी करेगी, जब वह 2024 में कमला हैरिस को राष्ट्रपति बनाएगी। मुझे विश्वास है कि बाइडन और कमला मिलकर अगले चार वर्षों में अमेरिकी लोकतंत्र की खोई प्रतिष्ठा का पुनरोद्धार करेंगे।
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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