यह मुर्गियों का दड़बा ? - Newztezz

Breaking

Thursday, November 12, 2020

यह मुर्गियों का दड़बा ?

 


शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में वही हुआ, जो अक्सर दक्षेस (सार्क) की बैठकों में होता है। चीन, रुस, पाकिस्तान और मध्य एशिया के चार गणतंत्रों के नेता अपनी दूरस्थ बैठक में अपना-अपना राग अलापते रहे और कोई परस्पर लाभदायक बड़ा फैसला करने की बजाय नाम लिये बिना एक-दूसरे की टांग खींचते रहे। बैठक तो उन्होंने की थी, संयुक्तराष्ट्र संघ के 75 साल पूरे होने के अवसर पर लेकिन उनमें से पूतिन, शी, मोदी या इमरान आदि में से किसी ने भी यह नहीं कहा कि संयुक्तराष्ट्र के चेहरे पर जो झुर्रियां पड़ गई हैं, उन्हें हटाने का कोई उपाय किया जाए या संयुक्तराष्ट्र 75 साल का होने के बावजूद अभी तक अपने घुटनों पर ही रेंग रहा है तो कैसे दौड़ने लायक बनाया जाए ? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात की शाबाशी दी जा सकती है कि उन्होंने अपने भाषण में किसी राष्ट्र पर वाग्बाण नहीं छोड़े बल्कि ऐसे संगठनों की बैठकों में परस्पर वाग्बाण चलाने का उन्होंने विरोध किया। यही ऐसे संगठनों का लक्ष्य होता है। यह सावधानी रुस के व्लादिमीर पूतिन ने भी बरती। मोदी ने संयुक्तराष्ट्र की तारीफ करते हुए बताया कि भारत ने उसकी शांति सेना के साथ अपने सैनिकों को दुनिया के 50 देशों में भेजा है और कोरोना से लड़ने के लिए लगभग 150 देशों को दवाइयां भिंजवाई हैं। मोदी ने मध्य एशियाई राष्ट्रों के साथ भारत के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों का भी जिक्र किया। क्या ही अच्छा होता कि वे दक्षेस के सरकारी संगठन के मुकाबले एक दक्षिण और मध्य एशियाई राष्ट्रों की जनता का जन-दक्षेस खड़ा करने की बात करते। मैं स्वयं इस दिशा में सक्रिय हूं।

चीन के नेता शी चिन फिंग ने अपने भाषण में नाम लिए बिना अमेरिकी दखलंदाजी को आड़े हाथों लिया लेकिन इमरान खान वहां भी चौके-छक्के लगाने से नहीं चूके। उन्होंने फ्रांस को दुखी करनेवाले इस्लामी कट्टरवाद की पीठ तो ठोकी ही, भारत पर पत्थरबाजी करने से भी वे बाज नहीं आए। भारत का नाम तो उन्होंने नहीं लिया लेकिन कश्मीर का मसला उठाकर उन्होंने आत्म-निर्णय की मांग की, नागरिकता संशोधन कानून और कई सांप्रदायिक मसलों का जिक्र किया। अच्छा हुआ कि इमरान ने मोदी को उस बैठक में दूसरा हिटलर नहीं कहा। इमरान खान को मैं जितना जानता हूं, वे काफी अच्छे और संयत इंसान हैं लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे अपनी फौज और मुल्ला-मौलवियों की कठपुतली बने हुए हैं। पेरिस के हत्याकांड पर उनका शुरुआती बयान काफी संतुलित था, लेकिन पश्चिम और मध्य एशिया के मुसलमानों की लीडरी के खातिर उन्होंने इस मंच का इस्तेमाल कर लिया। मुझे शंका होती है कि यह एससीओ संगठन भी दक्षेस की तरह बड़बड़ाती मुर्गियों का दड़बा बनकर रह जाएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

No comments:

Post a Comment