हैदराबाद की नगर-निगम के चुनाव और उसके परिणामों की राष्ट्रीय स्तर पर विवेचना हो रही है लेकिन मुझे इस स्थानीय बिल में से एक अंतरराष्ट्रीय सांप निकलता दिखाई पड़ रहा है। यह स्थानीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय चुनाव साबित हो सकता है। यह एक भारत को कई भारत बनानेवाली घटना बन सकता है। मोहम्मद अली जिन्ना ने तो सिर्फ एक पाकिस्तान खड़ा किया था लेकिन अब भारत में दर्जनों पाकिस्तान उठ खड़े हो सकते हैं। भाजपा के नेता खुशी मना रहे हैं कि उन्होंने अ.ओवैसी की मुस्लिम एकता पार्टी के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत ली हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार की जीत 12 गुनी हो गई है। 4 से 48 हो गई है। भाजपा इस प्रचंड विजय पर अपना सीना फुलाए, यह स्वाभाविक है। इसे वह पूर्ण दक्षिण-विजय का शुभारंभ मान रही है। इस अपूर्व विजय का श्रेय सभी भाजपा नेता अपने महान नेता नरेंद्र मोदी को दे रहे हैं। इसके अलावा वे किसी को दे भी नहीं सकते। लेकिन इसका श्रेय मैं ओवैसी को भी देता हूं। मोदी और ओवैसी ने हैदराबाद के मतदाताओं के बीच हिंदू—मुसलमान की दीवार खड़ी कर दी है। ओवैसी की पार्टी ने सिद्ध किया है कि वह भाजपा से भी अधिक मजबूत है। उसने पिछली बार 60 सीटें लड़ी थीं और 44 सीटें जीती थीं। इस बार उसने 51 सीटें लड़ीं और फिर भी वह 44 सीटें जीतीं जबकि भाजपा ने 149 सीटें लड़ीं थी। ओवैसी की पार्टी सिर्फ 6 सीटें हारी जबकि भाजपा 101 सीटें हार गई। दूसरे शब्दों में हैदराबाद का चुनाव का असली महाविजेता ओवैसी है। ओवैसी ने बिहार के चुनाव में भी अपना जल्वा दिखा दिया था। बिहार और हैदराबाद में कांग्रेस का सफाया किस बात का सूचक है ? क्या इस बात का नहीं कि सारे मुस्लिम वोट अब ओवैसी-पार्टी की तरफ खिंचे चले जा रहे हैं ? क्या ओवैसी की पार्टी जिन्ना, लियाकत अली और खलीकुज्जमान की मुस्लिम लीग नहीं बनती जा रही है ? मुस्लिम लीग ने भी 1906 में पैदा होने के वक्त भारत-विभाजन की मांग नहीं की थी। जिन्ना के जमाने में वह भारत के अंदर ही मुसलमानों के लिए जगह-जगह स्वायत्त इलाके मांगने लगी थी। ऐसे मुस्लिम-बहुल इलाके 1947 में तो थे। जैसे पंजाबी, सिंधी, बलूच, पठान और बंगाली। वे पाकिस्तान बन गए। अलग हो गए। अब किस इलाके को आप अलग करेंगे ? 25-30 साल बाद क्या देश के अंदर ही दर्जनों मुस्लिम भारतों की मांग खड़ी नहीं हो जाएगी? देश के इन दर्जनों टुकड़ों की घंटियां मुझे आज हैदराबाद से सुनाई पड़ रही हैं। अप्रत्याशित विजय के शंखनाद में भाजपा के नेताओं को ये वीभत्स घंटियां चाहे सुनाई न पड़ें लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा समस्त राष्ट्रवादी और राष्ट्रप्रेमी चिंतकों के लिए यह चिंता का विषय है। इस चिंता को लव-जिहाद और नागरिकता संशोधन जैसे अपरिपक्व कानूनों ने ज्यादा गहरा कर दिया है। भारत को यदि हमें सबल और अटूट बनाए रखना है तो उसे सांप्रदायिकता से मुक्त रखना पड़ेगा।
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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