गांधीवादी सेक्युलर सामाजिक कार्यकर्ता फैजल खान को मथुरा जेल से रिहा किया जाये। जिला पुलिस की नजर में मंदिर में नमाज पढ़ना अपराध है। अत: फैजल और उनके साथी नीलेश गुप्त तथा आलोक रतन को जेल में डाल दिया गया। महीना बीता, जमानत भी नहीं मिली। यह घटना वैष्णव कवि रहीम और रसखान की परंपरा के विपरीत है। कबीर की चेतावनी स्मरण आती है कि :
''दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।
बिना जीव के श्वास से, लोहा भसम हो जाये।''
इस विधि—स्नातक और सर्वधर्मसद्भाव के आस्थावान फैजल खान के विषय में थोड़ा परिचय पहले कर लें। वे भारत के खुदाई खिदमतगार संस्था के राष्ट्रीय संयोजक हैं। खुदाई खिदमतगार (ईश्वर के सेवक) संगठन की स्थापना 1929 में पेशावर में सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान ने की थी। इसे मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत के एजेन्टों का गिरोह कहा और इस्लामी पाकिस्तान का शत्रु बताकर गैरकानूनी करार दिया था। इसके नेता और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के मुख्यमंत्री रहे डा. खान अब्दुल जब्बार खान की निर्वाचित सरकार को (1947) बर्खास्त कर, फौजी कार्रवाही द्वारा जबरन उनके सीमांत प्रदेश का पाकिस्तान में विलय करा दिया गया था। बाद में यह 44—वर्षीय फैजल खान के कुटुंबीजन भारत में बस गये। उनके संगठन में आज पचास हजार से अधिक सदस्य हैं। वे मुसलमानों को पंथनिरपेक्षता तथा उदार सोचवाला बनाने हेतु दो दशक से प्रयत्नशील हैं। इसी अभियान के कारण केरल में कोझिकोड (कैलीकट जनपद) में मुस्लिम उग्रवादियों ने फैजल पर प्राणघातक आक्रमण किया था। जामिया नगर (दिल्ली) के गफ्फार मंजिल में फैजल के पड़ोसी डा. कुश कुमार सिंह के अनुसार इस मुसलमान को रामचरित मानस तथा हनुमान चालीसा कंठस्थ है। सनातन धर्म का ज्ञान भी भरपूर है।
वे रामजन्मभूमि तथा कृष्ण जन्मस्थान में उपासना कर चुके हैं। फैजल वामपंथी उदारवादियों के सख्त विरोधी हैं। क्योंकि उनकी राय में यह लोग सांप्रदायिक समस्या का समाधान करने के बजाये अपनी स्वार्थपरक, एकांगी विचारधारा का प्रसार करने में ज्यादा सक्रिय रहते है। एक विवाद के दौरान फैजल ने कथित गंगाजमुनी कल्चर वालों से पूछा था कि उनके संगठन में कितने मुसलमान हैं? फिर फैजल ने स्वयं टिप्पणी की थी कि तुलना में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध राष्ट्रीय मुस्लिम मंच में कहीं अधिक मुस्लिम सदस्य हैं। फैजल का अपने सहधर्मियों से भी आग्रह रहा कि उन्हें स्वीकारना चाहिये कि ''मुसलमानों को भी बदलना होगा, उदार विचार अपनाने होंगे।''
इस परिवेश में फैजल का हिन्दुओं से भी एक अनुरोध है कि उन्हें मुसलमानों को समझना चाहिए, निन्दा नहीं। अनुभूति की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये एक दर्जी को साधारण कपड़े के मुकाबले खादी को सिलने में ज्यादा मेहनत करना पड़ता है। यही बात मुसलमानों के हृदय परिवर्तन करने पर भी लागू होती है।
मथुरा में गत माह फैजल खान और उनके खुदाई खिदमतगार साथियों की गिरफ्तारी भी अत्यंत जल्दबाजी और बिना तार्किक जांच—पड़ताल किये हुई थी। वे सब मथुरा की चौरासी कोस की परिक्रमा में शामिल हुये थे। आखिरी दिन वे जब नन्दबाबा मंदिर में दर्शनार्थ गये थे, तो वहां के पुजारी कान्हा गोस्वामी ने उन्हें भोजन कराया। उसी बेला पर अजान सुनाई दी। फैजल ने बताया कि वह नमाज हेतु जाना होगा। तब गोस्वामीजी ने फैजल से कहा कि : ''यह मंदिर भी ईश्वर का ही घर है। अत: ईश्वर की इबादत यहां भी हो सकती है।'' अर्थात अनुमति प्राप्त कर नमाज अदा की गई। इसे कुछ लोगों ने वीडियो में ले लिया। फिर शरारतन विकृत रूप से सोशल मीडिया पर पेश कर वाइरल कर दिया। यह पत्रकारी कला थी
यहां महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या हिन्दू ईश्वरों के घर में प्रवेश अन्य मतावलम्बियों हेतु वर्जित है? दयानन्द सरस्वती के सुधारवादी आर्यसमाज के आन्दोलन को याद कर लें। स्व. श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ "सामाजिक हिन्दू" साधना को भी आगे बढ़ाया था और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सामाजिक पक्ष पर बल दिया था। महंत अवैद्यनाथ के चिंतन और दर्शन को समझ लें। मूर्तिभंजक, कट्टर इस्लामी मजहब वाला अकीदतमंद व्यक्ति यदि कृष्णोपासक बन जाता है। वैष्णव आस्था केन्द्रों में प्रार्थना करता है तो कि धर्मनिष्ठ हिन्दू को एतराज क्यों? जन्मना नहीं, कर्मणा भी वे हिन्दू हो सकते हैं। इस्कोन के सदस्यों का उदाहरण है।
नीचे दो चित्र प्रस्तुत हैं। एक में फैजल खान दक्षिण के शैव पुजारी परिवार के साथ शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हुये दिखता है। दूसरा नन्दबाबा मंदिर के पुजारी द्वारा आशीर्वाद लेते हुये। इतना ही पर्याप्त प्रमाण है कि हिन्दू मंदिरों में हर एक का प्रवेश संभव है।
अत: उत्तर प्रदेश सरकार को सोचना पड़ेगा कि यदि बुतशिकन (मूर्तिभंजक) मजहब का व्यक्ति वैष्णव मंदिर में आता है तो वह कोई भी दण्डनीय अपराध नहीं होता है। बल्कि परस्पर—विरोधी आस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करने का सत्कार्य करता है।
मैं विश्व के छ: महाद्वीपों के 51 राष्ट्रों में चर्च, मस्जिद तथा सिनेगोग (यहूदी आस्था केन्द्रों) में सपरिवार जाकर अपना श्रीकृष्ण का नामजप तथा गायत्री मंत्र पढ़ चुका हूं। फिर भी मंअ आंध्र का निखालिस आस्थावान नियोगी विप्र हूं। यज्ञोपवीत धारक हूं। मुझे गर्व है कि मैं सनातनी हिन्दू हूं।
फैजल खान का पक्षधर बनकर मेरा यकीन दृढ़ हो गया है कि परमपिता परमात्मा के लिये अब मैं कही अधिक स्वीकार्य होउंगा। अत: फैजल खान को रिहा करवा कर उदार हिन्दुत्व को प्रोत्साहित करने का मेरा प्रयास श्लाघ्य होगा।
फैजल खान के प्रणेता खान अब्दुल गफ्फार खान ही थे, जिन्हें सत्तालोलुपता से ग्रसित होकर 15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेसियों ने धोखा दिया था। इन भारतीय नेताओं ने गांधीवादी अहिंसक पठानों को जिन्ना के भेड़ियों के सामने फेंक दिया था। बादशाह खान को बारह से ज्यादा वर्षों तक पाकिस्तानी जेल के गुजारना पड़ा था। ऐसे थे ये खुदाई खिदमतगार के लोग। ये पश्तून जन आज भी ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत के इस्लामी पंजाबी सेना से मोर्चा ले रहे है।अत: योगी आदित्यनाथजी से सविनय अनुरोध है कि मथुरा पुलिस की बुद्धिहीन कृति को निरस्त कर, फैजल और उनके साथियों को ससम्मान रिहा कराये। भारतीय राष्ट्र के हर शुभ चिंतक की यही कामना होगी।
(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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