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Friday, October 11, 2024

भारत की दूसरी आजादी के हीरो थे जेपी, हो गए अमर

 


Jayaprakash Narayan : जयप्रकाश नारायण को लोग प्यार से जेपी बुलाते थे। हर साल पूरी दुनिया में जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी की जयंती मनाई जाती है। जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। जयप्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर उनके विषय में जानने के लिए बहुत कुछ है। जयप्रकाश नारायण के बड़े समर्थक पूर्व सांसद के.सी. त्यागी ने जयप्रकाश नारायण के जीवन पर प्रकाश डाला है। आप भी जान लीजिए जयप्रकाश नारायण के जीवन के आदर्श तथा संघर्ष की कहानी को।

दूसरी आजादी के महानायक थे जेपी

सबको पता है कि समाजवादी लोग भारत में लगाई गई इमरजेंसी को दूसरी गुलामी का दौर मानते हैं। भारत में 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगाई गई थी। तब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पूरा देश एकजुट होकर इमरजेंसी के विरूद्ध लड़ा था। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले सफल आंदोलन के कारण ही 21 मार्च 1977 को इमरजेंसी हटी थी। के.सी. त्यागी लिखते हैं कि विश्व में जितनी भी क्रांतियां सफल हुई हैं, प्राय: लगभग सभी नायकों ने सत्ता का नियंत्रण अपने पास रखा है। लेकिन महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण (जेपी) इसके अपवाद हैं। कारण स्पष्ट है कि उन्होंने क्रांति को सत्ता पलट के सीमित दायरे से आगे ले जाने का प्रयोग और प्रयास किया। उन्होंने राष्ट्र और समाज को राज सत्ता से अधिक व्यापक और बुनियादी माना। जेपी ने अपने क्रांतिकारी जीवन के अंतिम पड़ाव में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। राज सत्ता में बढ़ते लोकतंत्र विरोधी रुझान और सार्वजनिक जीवन में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन संपूर्ण सामाजिक परिवर्तन का एक व्यापक जन आंदोलन बन गया, लेकिन तत्कालीन सत्ताधीशों ने उसे अपनी सत्ता के लिए खतरा मानकर आपातकाल लगा दिया। जीवन-मरण के संघर्ष के दौरान जेपी ने देश की अंतर्चेतना को जगाया, जिसके फलस्वरूप 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी द्वारा अलोकतांत्रिक कांग्रेस को पराजित किया जा सका, लेकिन जेपी इस नए प्रयोग से भी संतुष्ट नहीं थे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के इतिहास का सिलसिलेबवार अध्ययन जेपी को गांधी, नेहरू, पटेल के बाद सबसे प्रभावी चिंतक के रूप में स्वीकारता है। अमेरिका से पढ़ाई समाप्त कर मार्क्सवाद से प्रभावित जेपी को कांग्रेस के तात्कालिक नेतृत्व से ज्यादा आशाएं नहीं थीं। यही वह दौर है, जब जेपी देश भर के समाजवादी तत्यों को करके कांग्रेस पार्टी को मौलिक एवं परिवर्तन का वाहक संगठन बनाने के प्रयासों में जुटे। इसमें प्रखर गांधीवादी के साथ साथ मार्क्सवादी चिंतन से जुड़े लोग शामिल थे। महत्मा गांधी के समय से ही नेपाल की राजशाही के विरुद्ध चल रहे जन आंदोलनों को कांग्रेस का निरंतर समर्थन मिलता था। जेपी के नेपाली कांग्रेस के नेता बीपी कोइराला परिवार से निकट संबंध थे, जिन्हें नेपाल सरकार लंबे अरसे से नजरबंद किए हुई थी। डॉ. लोहिया के नेतृत्व में समाजवादियों द्वारा कोइराला की रिहाई के लिए एक प्रदर्शन नेपाली दूतावास पर रखा गया। डॉ. लोहिया समेत सभी लोगों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। जेपी तो मानो आग बबूला थे। उन्होंने सरकार की कड़ी निंदा की और इसे नागरिक आजादी पर स्वतंत्र भारत में पहला प्रहार करार दिया।

समादवादी पार्टी का गठन

इसी बीच समाजवादी पार्टी के गठन के बाद कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर जीतकर आए समाजवादियों ने त्यागपत्र देने शुरू कर दिए। यह भारतीय राजनीति में मैतिक मूल्यों की पराकाष्ठा थी। त्यागपत्र देने वालों में अगली कतार में आचार्य नरेंद्र देवे भी थे। उपचुनाव की घोषणा हो चुकी थी, आचार्य जी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार घोषित हुए। पंडित नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोबिंद बल्लभ पंत से निजी तर पर आग्रह किया कि उनके विरूद्घ कोई कांग्रेसी उम्मीदवार न खड़ा किया जाए, लेकिन समाजवादियों से कांग्रेस कस दक्षिणपंथी नेतृत्व मानो उन्हें सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा था। जेपी के आक्रोश की सीमा नहीं थी। उन्होंने लिखा कि कांग्रेस तानाशाही की ओर अग्रसर है। 1952 में लोकसभा के आम चुनावों में समाजवादियों की करारी हार हुई। उन्हें मात्र 13 सीटों पर ही विजय हासिल हुई। इधर समाजवादी पार्टी में निरंतर उभर रहे अंतर्विरोधों से जेपी निराश हुए और मेहनत से बनाई अपनी ही पार्टी को उन्होंने अलविदा कहा। इसी बीच डॉ. विनोबा भावे भूदान कार्यक्रम चलाकर काफी लोकप्रिय हो चले थे। जेपी का साथ मिलने से कई लाख एकड़ भूमि का वितरण भूमिहीनों में कराकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

वर्ष-1974 से शुरू हुआ था निर्णायक आंदोलन

केसी त्यागी लिखते हैं कि वर्ष 1974 के छात्र विद्रोह की कमान भी उन्होंने सशर्त संभाली कि इसमें हिंसा की कोई जगह नहीं होगी। इंदिरा गांधी के इर्द-गिर्द जमा चौकड़ी ने चंद्रशेखर के प्रयोसों पर पानी फेर दिया, जब वे दोनों के बीच तालमेल के प्रयासों में लगे थे। आपातकाल में जेपी समेत लाखों कार्यकर्ता जेल गए। जेपी के आभा-मंडल के कारण ही जनता पार्टी का जन्म हुआ और  राष्टीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई। इंदिरा जी चुनाव हार चुकी थीं। समाजवादियों में जेपी अकेले नेता थे, जो पंडित नेहरू को ‘भाई साहब’ कह कर संबोधित करते थे। ऐसा ही रिश्ता उनका इंदिरा गांधी से बना रहा। आंदोलन जब चरम पर था, तो जयप्रकाश नारायण ने अपने एक विशेष दूत के जरिये कुछ पारिवारिक पत्र इंदिरा जी के यहां इस आशय के साथ भिजवा दिए कि निजी रिश्तों को राजनैतिक रूप दिए जाने से बचा जा सके। रामलीला मैंदान की जनता पार्टी की विजय रैली में अपना भाषण समाप्त कर वह सीधे इंदिरा जी से मिलने उनके आवास पहुंचे और कुशल-क्षेम पूछते हुए अश्रुपूर्ण आंखों से विदाई ली।

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