Delhi News : एक समय अन्ना आंदोलन के दौरान देश में तेजी से चर्चा के शिखर पर पहुंचने वाले अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन से निकलने के बाद सियासी पिच पर शुरुआत की। अन्ना आंदोलन की वजह से अरविंद केजरीवाल ने जितनी तेजी से बुलंदी को छुआ था, उतनी ही तेजी से अब उनका जादू भी बेअसर हो रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में दस साल राज करने के बाद अब उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। इस हार से आम आदमी पार्टी ने सिर्फ सत्ता ही नहीं गंवाई बल्कि अरविंद केजरीवाल की विधायकी भी चली गई। एक हफ्ते में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को तीन बड़े सियासी झटके लगे हैं, जिससे उभरना पार्टी के लिए आसान काम नहीं होगा।
अब सियासी चोट खाने को आप को रहना होगा तैयार
दिल्ली चुनाव में हारने के बाद पंजाब की सत्ता पर भी संकट के बादल गहराने लगे हैं, तो दिल्ली के एमसीडी से दो महीने बाद सियासी वर्चस्व खत्म हो सकता है। अन्ना आंदोलन के तमाम मुख्य लोगों जिनसे एक समय केजरीवाल के बेहतर संबंध थे उन्होेंने हार के बाद जमकर भड़ास निकाला। इस तरह एक के बाद एक सियासी चोट खाने के लिए आम आदमी पार्टी को तैयार रहना होगा? एक हफ्ते में आम आदमी पार्टी को बड़े झटके लगे हैं, जिससे बचना और संभलना केजरीवाल और आप के लिए काफी मुश्किल भरा काम है।
आप को पहला झटका चंडीगढ़ में लगा
आम आदमी पार्टी को सबसे पहला झटका चंडीगढ़ में लगा, 30 जनवरी को चंडीगढ़ की मेयर सीट पर चुनाव हुए थे। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के पास मेयर सीट जीतने के लिए पर्याप्त नंबर थे, लेकिन उसके बाद भी जीत नहीं सकी। चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद सीटें हैं। जिसमें से आम आदमी पार्टी के पास 13 पार्षद, कांग्रेस के पास 6 पार्षद और बीजेपी के पास 16 पार्षद थे। चंडीगढ़ से कांग्रेस सांसद होने के नाते मनीष तिवारी भी निगम पार्षद में सदस्य हैं। इस तरह से 36 सदस्यों में से मेयर पद जीतने के लिए 19 वोट की जरूरत बनती है, जो आप और कांग्रेस गठबंधन के पास था। उसके बावजूद इनकी फूट की वजह से बीजेपी बाजी मार ले गई। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सदस्यों को मिलाकर 20 वोट हो रहे थे। चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में बीजेपी 19 वोट मिले तो आम आदमी पार्टी-कांग्रेस के प्रत्याशी को 17 वोट ही मिल सके। इस तरह नंबर गेम होने के बाद भी आम आदमी पार्टी अपने मेयर नहीं जिता सकी, क्योंकि उसके तीन पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग किया। नंबर होने के भी मेयर सीट आम आदमी पार्टी का नहीं जीतना बड़ा झटका था। अब पार्टी में भीतर उथल-पुथल मच गई है।
दिल्ली चुनाव में हार के बाद आप के अरमानों पर पानी फिरा
दिल्ली की सियासत में धूमकेतु की तरह उभर आप और केजरीवाल की पार्टी 2015 और 2020 में क्लीन स्वीप करने वाली आम आदमी पार्टी को 2025 के चुनाव में करारी मात खानी पड़ी है। एक समय आप का यह हाल था कि 2015 में आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीती थी और 2020 में 63 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन 2025 में सिर्फ 22 सीट पर ही सिमट गई है। 11 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही आम आदमी पार्टी को चुनावी मात ही नहीं खानी पड़ी बल्कि सत्ता से भी बेदखल हो गई है। इस तरह से आम आदमी पार्टी जिस विकास मॉडल के सहारे राष्ट्रीय स्तर पर अपने सियासी पैर पसारने में जुटी हुई थी, अब चुनावी शिकस्त मिलने के बाद उसके अरमानों पर पानी फिर सकता है।
केजरीवाल की हार से लगा तीसरा झटका
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता ही नहीं गंवाई बल्कि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी सीट भी नहीं जीत सके, और उनकी विधायकी भी चली गई। नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल को बीजेपी के प्रत्याशी प्रवेश वर्मा ने करारी मात दी। केजरीवाल की हार आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका है, जिसके चलते ही पार्टी के जीते कई विधायकों ने जीत का जश्न तक नहीं मनाया। केजरीवाल ही नहीं बल्कि उनके कई मजबूत सिपहसलार विधानसभा नहीं पहुंच सके, जिसमें मनीष सिसोदिया से लेकर सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, दुर्गेश पाठक, आदिल खान, सत्येंद्र जैन और दिनेश मोहनिया जैसे नेताओं को मात खानी पड़ी है। इस तरह आम आमी पार्टी की टॉप लीडरशिप विधानसभा नहीं पहुंच सकी है। ये आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। Delhi News
एक के बाद एक हार से कैसे हिल गई आप
दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी एक के बाद एक मिली हार से पूरी तरह हिल गई है। एक सप्ताह में तीन बड़े झटके आम आदमी पार्टी को लगे हैं, जिसके सियासी झटके का असर सिर्फ दिल्ली की सत्ता पर ही नहीं बल्कि एमसीडी पर भी पड़ेगा तो पंजाब की सियासत में भी चिंता बढ़ाएगा। विधानसभा चुनाव हारने का पहला इफेक्ट एमसीडी पर पड़ेगा, जहां पर दो महीने के बाद अगले मेयर का चुनाव होना है। बीजेपी की पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली में सरकार बनी है, जिसके चलते विधानसभा स्पीकर बीजेपी का ही होगा। Delhi News
आप की सारी गणित ही गड़बड़ा गई
विधानसभा स्पीकर अपने विवेक पर 14 विधायकों को नगर निगम के सदस्य के रूप में मनोनीत करते हैं। अभी तक की परंपरा रही है कि सत्ता पर काबिज पार्टी के विधायकों को ही मनोनीत किया जाता रहा है। स्पीकर अगर 14 मनोनीत सदस्यों में 13 विधायक भी बीजेपी के नगर निगम में मनोनीत होते हैं, तो भी पार्टी एमसीडी का बहुमत हासिल कर लेगी। इस तरह बीजेपी बिना किसी तोड़फोड़ के अप्रैल में अपना मेयर बना लेगी। इसके अलावा दिल्ली से आम आदमी पार्टी के चुने जाने वाले राज्यसभा सदस्यों के चुनाव पर भी पड़ेगा।
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